राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता का सही समय, शक्ति एक करके जुटना जरूरी
RNE Network
12 करोड़ से अधिक राजस्थानियों की मायड़ भाषा राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के लिए आवाज उठाने का ये सही समय है। परिस्थियां पहली बार इतनी अनुकूल बनी है। जरूरत ये है कि भाषा के लिए अलग अलग स्तर पर हो रहे ईमानदार प्रयासों को एकजुट कर एक साथ शक्ति लगाना जरूरी है। अपने स्तर पर जो लोग मान्यता, दूसरी राजभाषा आदि के लिए प्रयास कर रहे हैं, वे स्तुत्य हैं। अब बड़ी लड़ाई जरूरी है और उसका आधार राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता ही हो सकती है।
संवैधानिक मान्यता की मांग को बल तभी मिलेगा जब हर प्रयास को एक छत के नीचे लायें। उससे मजबूत शक्ति बनेगी और राज्य सरकार, केंद्र सरकार पर भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा। केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति को लागू करने में इस बार ज्यादा रुचि दिखा रही है, इस कारण ही परिस्थिति अनुकूल है। इस नीति में स्थानीय भाषा मे ही प्राथमिक शिक्षा देने की बात है। जिसे राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने लागू करने की बात कही है। यही वो अवसर है जिसका फायदा हर राजस्थानी प्रेमी को उठाना चाहिए। इससे राज्य की शिक्षा में राजस्थानी का सीधा प्रवेश हो जायेगा। इस भाषा को पढ़ चुके लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध हो जायेगा।
राज्य के मुख्यमंत्री भजनलाल जी के इस समय केंद्र में अच्छे सम्बंध है। केंद्रीय नेतृत्त्व उनको पसंद करता है। उनकी सहजता के कारण केंद्र सरकार उनकी हर योजना को मंजूरी भी देता है। गृहमन्त्री अमित शाह से उनकी निकटता जग जाहिर है। संवैधानिक मान्यता का मसला भी गृह मंत्रालय से ही जुड़ा हुआ है। इस कारण वहां तक संवैधानिक मान्यता की बात आसानी से पहुंच सकती है। मान्यता की फाइल इसी मंत्रालय के पास ही है, जिस पर एक्शन कराया जाना है। जो सीएम के लिए इस समय मुश्किल काम नहीं है।
सीएम व शिक्षा मंत्री भी राजस्थानी भाषा को लेकर सॉफ्ट है। उनको केवल राजी करना जरूरी है। जो कोई ज्यादा कठिन काम नहीं। शिक्षा मंत्री दिलावर तो मुख्य सचिव से आग्रह कर राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता के लिए गृह मंत्रालय को पत्र भी लिखा चुके हैं। राज्य में हर जगह जब दिलावर जाते हैं तो लोग उनको इस विषय मे भी कहते हैं, हर बार उन्होंने सकारात्मक जवाब देकर ये संकेत दिया है कि वे मान्यता के पक्ष में है। इस कारण माना जाना चाहिए कि संवैधानिक मान्यता की बात रखने के लिए यह उचित समय है।
मगर इसके लिए हम भाषा प्रेमियों को भी प्रयास करने पड़ेंगे। राजस्थानी दूसरी राजभाषा बने, इससे किसी भी भाषा प्रेमी को एतराज नहीं। वो काम होना अपनी जगह है। उसका भी सम्मान है। मगर राजस्थानी भाषा को जब संवैधानिक मान्यता मिलेगी तब ही असली फायदा युवाओं को रोजगार का मिलेगा। दूसरी राजभाषा बनने का भी फायदा है, इससे इंकार नहीं। मगर पूरा फायदा संवैधानिक मान्यता से मिलेगा। दूसरी राजभाषा बनने से कुछ फायदे होंगे और संवैधानिक मान्यता से पूरे फायदे होंगे। दोनों स्तर पर हम सक्रिय रहें, इसमें भी किसी को एतराज नहीं। संवैधानिक मान्यता मिलने पर राजस्थानी पहली राजभाषा बनेगी, तब हर तरह की नोकरियों में युवाओं को पूरा फायदा मिलेगा। संवैधानिक मान्यता व दूसरी राजभाषा की बात पर कोई सीधी टकराहट होनी ही नहीं चाहिए।
अब समय है कि अपने अपने स्तर पर मान्यता व दूसरी राजभाषा बनाने के लिए प्रयास कर रहे सभी लोगों को एकसाथ लाना चाहिए और इस परिस्थिति का फायदा उठाना चाहिए। ये मौका है। हमें ‘ मत चुके चौहान ‘ की तर्ज पर अपनी मां बोली के लिए जुटना चाहिए। बारबार इस तरह की अनुकूल परिस्थियां नहीं बनती है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।